पहले सोचो, योजना बनाओ, फिर खूबियों और खामियों को समझने के बाद काम शुरू करो। सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया के जीवन की फिलॉसफी यही रही है। इन्होंने इंजीनियरिंग के क्षेत्र वो उपलब्धियां हासिल जो इतिहास में अमर हो गईं। आज इनका जन्मदिन है, जिसे इंजीनियर्स-डे के रूप में सेलिब्रेट किया जाता है। सर मोक्षगुंडम ने अपने दौर में इंजीनियरिंग के क्षेत्र में ऐसे कीर्तिमान रचे जिसका लोहा अंग्रेजों ने भी माना। इंजीनियर्स डे पर उनके जीवन के उन किस्सों को जानिए, जिसने सबको चौंकाया...
जिन अंग्रेजों ने मजाक उड़ाया, उन्हीं ने मांगी माफी
विश्वेश्वरैया के जीवन सबसे दिलचस्प किस्सा अंग्रेजों से जुड़ा है। एक बार वह अंग्रेजों के साथ ट्रेन में सफर कर रहे थे। सांवले रंग और सामान्य कद काठी वाले विश्वेश्वरैया को अनपढ़ समझकर अंग्रेजों ने मजाक उड़ाना शुरू कर दिया। इस पर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। ट्रेन तेज रफ्तार में चल रही थी, वह अचानक उठे और चेन खींच दी। ट्रेन वहीं रुक गई।
यात्रियों ने उन्हें बुरा भला कहना शुरू कर दिया। थोड़ी देर बाद गार्ड के सवाल करने पर उन्होंने कहा, मैंने चेन खींची है। मेरा अनुमान है कि करीब 220 गज की दूरी पर रेल की पटरी उखड़ी हुई है। गार्ड ने पूछा, यह आपको कैसे पता चला। उन्होंने जवाब दिया, सफर के दौरान अहसास हुआ कि ट्रेन की गति में अंतर आ गया है। पटरी की तरफ से आने वाली आवाज में बदलाव हुआ है।
उनकी इस बात की पुष्टि करने के लिए गार्ड जब कुछ दूरी आगे चला तो दंग रह गया। वहां पर पटरी के नट-बोल्ट बिखरे पड़े थे। अंग्रेज यह देखकर दंग रह गए और उनसे माफी मांगी।
इकलौते इंजीनियर जिसने 75 फुट ऊंची की सीढ़ी पर चढ़ने का साहस जुटाया
एक बार देश के कुछ चुनिंदा इंजीनियरों को अमेरिका भेजा गया ताकि वे वहां की फैक्ट्रियों की वर्किंग को समझ सकें। फैक्ट्री के एक ऑफिसर ने कहा, अगर मशीन को समझना चाहते हैं तो 75 फुट ऊंची सीढ़ी पर चढ़ना पड़ेगा। इतनी ऊंची सीढ़ी देखकर सभी इंजीनियर पीछे हट गए लेकिन उस समूह में सबसे उम्रदराज होने के बाद भी डॉ. मोक्षगुंडम ने कहा, मैं देखूंगा।
वह सीढ़ी पर चढ़े और मशीन को देखा। उनके बाद सिर्फ दो और इंजीनियर चढ़े। उनका साहस देखकर अमेरिका की फैक्ट्री में लोगों ने तारीफ की।
लम्बी उम्र का रहस्य बताया
102 साल की उम्र में डॉ. मोक्षगुंडम का निधन हुआ। उम्र के इस पड़ाव पर भी वह अंतिम समय तक एक्टिव रहे। एक बार इनसे इतनी लम्बी उम्र का रहस्य पूछा गया है तो उन्होंने जवाब दिया।
कहा- जब बुढ़ापा मेरा दरवाजा खटखटाता है तो मैं भीतर से जवाब देता हूं कि विश्वेश्वरैया घर पर नहीं है। और वह निराश होकर लौट जाता है। बुढ़ापे से मेरी मुलाकात ही नहीं हो पाती है तो वह मुझ पर कैसे हावी हो सकता है।
इसलिए कर्नाटक के भागीरथ कहलाए
डॉ. मोक्षगुंडम को कर्नाटक का भागीरथ भी कहा जाता है। मात्र 32 साल की उम्र में उन्होंने सिंधु नदी से सुक्कुर कस्बे तक पानी पहुंचाने के लिए एक प्लान बनाया। वो प्लान सभी इंजीनियरों को पसंद आया। उन्होंने बांध से पानी के बहाव को रोकने वाले स्टील के दरवाजे बनवाए, जिसकी तारीफ ब्रिटिश अधिकारियों ने भी की। आज भी इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। विश्वेश्वरैया ने मूसा औरा इसा नाम की दो नदियों के पानी को बांधने के लिए भी प्लान तैयार किए। इसके बाद उन्हें मैसूर का चीफ इंजीनियर नियुक्त किया गया।
वो उपलब्धियां जो डॉ. मोक्षगुंडम के नाम रहीं
डॉ. मोक्षगुंडम के नाम कई उपलब्धियां रही हैं। इनमें कृष्णराजसागर बांध, भद्रावती आयरन एंड स्टील वर्क्स, मैसूर संदल ऑयल एंड सोप फैक्टरी, मैसूर विश्वविद्यालय, महारानी कॉलेज, बैंक ऑफ मैसूर का निर्माण, वो उपलब्धियां हैं जो लोगों की जुबां पर हैं। इन्होंने भारत की एक बड़ी चीनी मिल स्थापित करवाने के अलावा भी कई बड़े निर्माण कराए।
1912 में जब मैसूर के महाराज ने इन्हें अपना मुख्यमंत्री घोषित किया तो इन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में काम किया। इनके कार्यकाल में स्कूलों की संख्या 4500 से बढ़कर 10,500 तक पहुंची।
बेंगलुरू में हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड और मुम्बई में प्रीमियर ऑटोमोबाइल फैक्ट्री भी इनकी मेहनत का नतीजा थी।
मैसूर में जन्मे सर विश्वेश्वरैया 12 साल के थे जब उनके पिता का निधन हुआ। चिकबल्लापुर से शुरुआती पढ़ाई के बाद वे बीए की डिग्री के लिए बेंगलुरू चले गए। 1881 में ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद पुणे के कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से पढ़ाई पूरी की।
Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
Thanks for reading.
Please Share, Comment, Like the post And Follow, Subscribe IVX Times.
fromSource
No comments:
Post a Comment