आचार्य चाणक्य की नीतियां और विचार आज के समय में भी प्रासांगिक हैं। अगर कोई व्यक्ति अपने जीवन में सफलता चाहता है तो उसे इन विचारों को जीवन में उतारना होगा। आचार्य चाणक्य के इन्हीं विचारों में से आज हम एक विचार का विश्लेषण करेंगे। आज का ये विचार सुख और दुख में सामान रूप से भागीदार होने पर आधारित है।
"सुख और दुःख में समान रूप से सहायक होना चाहिए।" आचार्य चाणक्य
आचार्य चाणक्य के इस कथन का मतलब है कि सुख और दुख जीवन के दो पहलू हैं। अगर जीवन में दुख है तो सुख भी आएगा और अगर सुख है तो दुख का आना भी तय है। इसी तरह से मनुष्य को किसी के सुख और दुख दोनों में ही समान रूप से सहायक होना चाहिए। अक्सर ऐसा होता है कि कुछ लोग सुख में तो खूब साथ देते हैं लेकिन दुख की एक परछाई पड़ते ही सबसे पहले साथ छोड़ देते हैं। ऐसा होने पर इतना जरूर जान लेना चाहिए कि जो व्यक्ति दुख के समय आपके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है वही आपका अपना है। ऐसा इसलिए क्योंकि सुख के तो सभी साथी होते हैं लेकिन जो व्यक्ति दुख में आपका साथ छोड़ दे वो आपका अपना है ही नहीं।
ऐसा व्यक्ति सिर्फ सुख का ही साथी होता है। वो आपके साथ तब तक है जब तक आपके पास पैसा और सारी सुख सुविधाएं हैं। दुख की छाया पड़ते ही वो आपका साथ तुरंत छोड़ देगा। यानी कि दुख के समय ही इस बात की पहचान होती कि कौन सिर्फ कहने के लिए आपका अपना है और कौन सही मायनों में आपके साथ है। सुख और दुख का जीवन में आना जाना लगा रहता है। जिस तरह से सूरज के अस्त होते ही चंद्रमा निकलना तय है ठीक उसी प्रकार से सुख-दुख जीवन का कठोर सत्य है। ऐसे में व्यक्ति को हमेशा सुख और दुख दोनों में समान रूप से सहायक होना चाहिए।
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