चैत्र मास की पूर्णिमा को हनुमान जयंती का पर्व मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव के 11वें रुद्रावतार, यानि श्री हनुमान जी का जन्म हुआ था । वैसे मतांतर से चैत्र पूर्णिमा के अलावा कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को भी हनुमान जयंती के रूप में मनाया जाता है । पौराणिक ग्रंथों में दोनों का ही जिक्र मिलता है । लेकिन वास्तव में चैत्र पूर्णिमा को हनुमान जयंती और कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को विजय अभिनन्दन महोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस बार हनुमान जयंती के साथ-साथ पूर्णिमा और सुपर पिंक मून भी पड़ रहा हैं। इस दिन श्री हनुमान की उपासना व्यक्ति को हर प्रकार के भय से मुक्ति दिलाकर सुरक्षा प्रदान करती है । साथ ही हर प्रकार के सुख-साधनों से फलीभूत करती है। इस बार हनुमान जयंती 8 अप्रैल, बुधवार को मनाई जाएगी।
शास्त्रों में कहा जाता है कि भगवान शनि का प्रकोप से कोई नहीं बच सकता हैं। यहां तक कि बाबा भोलेनाथ भी नहीं बच पाए थे, लेकिन क्या आपको बता हैं कि एक बार हनुमान जी के ऊपर साढ़े साती प्रारंभ हुई थी परंतु शनिदेव ने उनके ऊपर से साढ़े साती का प्रभाव हटा दिया था। जानें इसके पीछे क्या है पौराणिक कथा।
भगवान शनि को कठोर दंड के देवता नाम से जाना जाता है। जिसके कुंडली में साढ़े साती का प्रारम्भ होता है। वह पूरे एक साल तक उसका पीछा नहीं छोड़ती हैं। लेकिन शास्त्रों में कहा गया है कि जो हनुमान जी का भक्त होता है उसके ऊपर साढ़े साती का प्रभाव कम होता है।
जानें आखिर क्यों नहीं हुआ हनुमान जी पर साढ़े साती का प्रभाव?
शास्त्रों में दी हुई पौराणिक कथा के अनुसार एक बार हनुमान जी अपने आराध्य देव भगवान श्री राम का स्मरण कर रहे थे। उसी समय शनि देव हनुमान जी के पास आए और कर्कश स्वर में बोले कि मैं आपको सावधान करने के लिए आया हूं कि भगवान श्री कृष्ण ने जिस क्षण अपनी लीला का अंत किया था। उसी समय से पृथ्वीं पर कलयुग का प्रभुत्व हो गया था। इस कलयुग में कोई भी देवता पृथ्वी पर नहीं रह सकता हैं, क्योंकि इस पृथ्वीं पर जो भी व्यक्ति रहता है। उस पर मेरी साढे़साती की दशा अवश्य ही प्रभावी रहती है और मेरी यह साढ़ेसाती की दशा आप पर भी प्रभावी होने वाली है।
शनि देव की बात सुनकर हनुमान जी ने कहा, 'जो भी प्राणी या देवता भगवान श्री राम के चरणों में आश्रित होते हैं। उन पर तो काल का प्रभाव भी नहीं होता है। यहां तक की यमराज भी भगवान श्री राम के भक्त के सामने विवश हो जाते हैं। इसलिए आप मुझे छोड़कर कहीं और चले जाएं क्योंकि मेरे शरीर पर श्री राम के अतिरिक्त दूसरा कोई भी प्रभाव नहीं डाल सकता।'
हनुमान जी की बात सुनकर शनिदेव ने कहा कि मैं सृष्टिकर्ता के विधान से विवश हूं। आप भी इसी पृथ्वी पर रहते हैं तो आप मेरे प्रभुत्व से कैसे बच सकते हैं। आप पर मेरी साढ़ेसाती आज इसी समय से प्रभावी हो रही है। इसलिए मैं आज और इसी समय से आपके शरीर पर आ रहा हूं। इसे कोई भी टाल नहीं सकता है।
शनि देव की बात सुनकर हनुमान जी बोले, 'आपको आना ही तो आ जाइए मैं आपको नहीं रोकूंगा।'
यह सुनकर शनिदेव हनुमान जी के मस्तिष्क में जाकर बैठ गए। जिसके कारण हनुमान जी के मस्तक में खुजली होने लगी। हनुमान जी ने अपनी उस खुजली को मिटाने के लिए बड़ा सा पर्वत उठाकर अपने सिर पर रख लिया था। जिसके कारण शनि देव उस पर्वत से दबकर घबराते हुए हनुमान जी से बोले कि आप यह क्या कर रहे हैं तब हनुमान जी बोले कि जिस तरह आप सृष्टि कर्ता के विधान से विवश हैं उसी प्रकार मैं भी अपने स्वभाव से विवश हूं। मैं अपने मस्तक की खुजली इसी प्रकार से मिटाता हूं। आप अपना काम करते रहिए मैं अपना काम करता हूं। यह बोलकर हनुमान जी ने एक और बड़ा सा पर्वत अपने मस्तक पर रख लिया।
पर्वतों से दबे हुए शनिदेव जब पूरी तरह से परेशान हो गए थे तो वह हनुमान जी से बोले कि आप इन पर्वतों को नीचे उतारिए। मैं आपसे संधि करने के लिए तैयार हूं। शनिदेव के ऐसा कहने पर हनुमान जी ने एक और पर्वत उठाकर अपने सिर पर रख लिया था। तीसरे पर्वत से दबकर शनि देव चिल्लाने लगे थे और बोले कि मुझे छोड़ दो मैं कभी भी आपके समीप नहीं आऊंगा, लेकिन फिर भी हनुमान जी नहीं माने और एक पर्वत और उठाकर अपने सिर पर रख लिया। जब शनिदेव से सहन नहीं हुआ तो हनुमान जी से विनती करने लगे और कहने लगे कि मुझे छोड़ दो पवनपुत्र मैं आप तो क्या उन लोगों के समीप भी नहीं जाऊंगा जो आपका स्मरण करते हैं। कृपया करके आप मुझे अपने सिर से नीचे उतर जाने दीजिए।
शनिदेव के यह वचन सुनकर हनुमान जी ने अपने सिर से पर्वतों को हटाकर उन्हें मुक्त कर दिया था। तब से शनिदेव हनुमान जी के समीप नहीं जाते हैं और हनुमान जी के भक्तों को भी नहीं सताते हैं।
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