आज भारत में दोहरा संकट है। कोरोना वायरस बीमारी और उससे उपजी लॉकडाउन की मजबूरी, जिससे देश में आर्थिक के साथ-साथ मानवीय संकट भी गहरा गया है। आज जो स्थिति है, वैसी ही स्थिति इससे पहले द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद पैदा हुई थी। लाखों लोगों की मौत हुई थी और अनगिनत लोग बेरोजगार हुए थे। हालांकि कई देशों में तबाही मचाने के बाद विश्वयुद्ध एक नए समाज की रचना का अवसर भी बना।
द्वितीय विश्व युद्ध ने की नए समाज की रचना
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन में नेशनल हेल्थ सर्विस बनी, जिसके तहत सभी लोगों का मुफ्त उपचार होने लगा। और भी कई देशों में चिकित्सा का सरकारीकरण हुआ। कई देशों में सामाजिक सुरक्षा की व्यवस्था की गई, ताकि बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता मिल सके। असंगठित सेक्टर को खत्म कर दिया गया। इससे आयकर देने वालों की संख्या बढ़ी, आयकर की दरें भी 30 से 50 फीसदी तक की गई।
यूरोपीय देशों का अनुभव बताता है कि इतनी उच्च आयकर दरों के बावजूद पिछले 50 सालों में इसका नकारात्मक असर नहीं हुआ तो इसलिए क्योंकि शिक्षा, चिकित्सा जैसी मूलभूत सुविधाएं लोगों को मुफ्त दी गई तो नागरिकों ने भी आयकर देने में आनाकानी नहीं की। इस तरह द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद पैदा संकट ने नए समाज को रचने का अवसर प्रदान किया। सवाल यह है कि हमारे देश के लिए भी कोरोना के बाद इसी तरह का समाज रचने का अवसर मिलेगा?
सरकार अभी क्या करें?
अभी सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि सरकार लॉकडाउन की अवधि के दौरान क्या करें। भारत के कुल कार्यबल का 80% से अधिक हिस्सा असंगठित क्षेत्र में कार्यरत है। इनके लिए यह अकल्पनीय मानवीय आपदा है। फिलहाल इनके लिए तत्काल प्रभाव से कदम उठाए जाने की जरूरत है, ताकि इस महामारी के दौर में वे खुद को अलग- थलग महसूस न करें।
इन कदमों में उनके लिए राशन की व्यवस्था करना, जनधन खातों में सम्मानजनक नकद राशि स्थानांतरित करना, पेंशन की राशि में समुचित बढ़ोतरी करना और प्रवासी श्रमिकों को अस्थायी रूप से आश्रय प्रदान करने के लिए स्टेडियम, सामुदायिक हॉल आदि का तब तक उपयोग करना जब तक कि कोरोना का सामुदायिक फैलाव जोखिम कम न हो जाए।
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