गर्भस्थ शिशु माता के साथ गर्भनाल द्वारा जुड़ा रहता है। यह तथ्य सर्वविदित है कि इसी के द्वारा शिशु अपना पोषण लेता है। गर्भनाल के रक्त में ‘हेमाटोपोइटिक स्टेम सेल’ तथा रक्त कणों की ‘प्रोजेनिटर या मूल जनक कोशिकाएं’ प्रचुर मात्रा में होती हैं। चिकित्सा विज्ञान में इस पर विभिन्न शोध हुए हैं और उनके निष्कर्षों के अनुसार कई रोगों के उपचार में गर्भनाल रक्त में पाई जाने वाली स्टेम सेल को उपयोगी पाया गया है। शोध में करीब अस्सी बीमारियों में इन स्टेम सेल के उपयोग की संभावनाएं तलाशी गईं। देखा गया कि कई प्रकार के कैंसर, लकवा, हृदय रोग, न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर्स, मेटाबोलिक, जेनेटिक बीमारियों आदि के उपचार के तरीके इन स्टेम सेल के उपयोग करके ढूंढे जा सकते हैं। ऐसी स्थिति में यह सोचना वाजिब था कि शिशु के जन्म के समय ही उसके कॉर्ड ब्लड यानी गर्भनाल के रक्त और उसमें मौजूद सेल्स को कहीं एकत्रित करके रखा जाए और भविष्य में आवश्यकता के अनुसार उपयोग किया जाए।
काॅर्ड ब्लड बैंक
सेल्स को सुरक्षित रखने के लिए भी बैंक होते हैं। विश्व स्तर पर ऐसे बैंकों के लिए मानक तैयार किए गए हैं। इसी आधार पर कॉर्ड ब्लड बैंक बनाए गए हैं। ये बैंक दो प्रकार के होते हैं- पब्लिक और प्राइवेट।
पब्लिक कॉर्ड ब्लड बैंक
पब्लिक कॉर्ड ब्लड बैंक किसी भी सामान्य रक्तकोष की तरह माता-पिता की सहमति से नवजात शिशुओं का कॉर्ड ब्लड एकत्रित करते हैं, उसे प्रक्रिया अनुरूप संभालकर रखते हैं और आवश्यकता पड़ने पर किसी को भी यह कॉर्ड ब्लड कुछ अन्य प्रक्रियाओं के बाद प्रदान करते हैं। पब्लिक कॉर्ड ब्लड बैंक में उपलब्ध मटेरियल की उपलब्धता उसी प्रकार होती है, जैसे कि किसी भी अन्य अंग के प्रत्यारोपण के लिए होती है।
प्राइवेट कॉर्ड ब्लड बैंक
प्राइवेट कॉर्ड ब्लड बैंक में कोई भी माता पिता अपनी इच्छा से अपने शिशु का गर्भनाल रक्त केवल अपने शिशु की या अपने परिवार की आवश्यकता के लिए सुरक्षित रखवाते हैं। विश्व के बहुत से देशों में अंग, प्रत्यंग व रक्तदान आदि करने में नागरिक सहज ही आगे आते हैं और ऐसे देशों में पब्लिक कॉर्ड ब्लड बैंक बहुत प्रभावी रूप से कार्य कर रहे हैं। दुर्भाग्यवश भारत में केवल एक ही पब्लिक कॉर्ड ब्लड बैंक था जो चेन्नई में कार्यरत था। लेकिन वह भी बंद हो गया है।
कॉर्ड ब्लड स्टेम सेल की जरूरी बातें
कैसे काम करती है?
यह इस अवधारणा पर टिकी हुई है कि यदि कोई बीमारी रोगी के स्वयं के मूल सेल में बिगड़ी हुई जीन संरचना के कारण है तो उस रोगी के इन सारे खराब सेल को हटाकर किसी डोनर से स्वस्थ सेल या कोशिकाएं ले ली जाएं। सेल्स को बदलने के बाद डोनेटेड सेल जैसे ही बढ़ने शुरू होते हैं, तो उनसे बनने वाले आगे के सभी सेल भी स्वस्थ बनेंगे और रोग खत्म हो जाएगा।
इस उपचार में क्या जरूरी है?
इसमें सबसे जरूरी है चढ़ाए जाने वाले कॉर्ड ब्लड की मात्रा। इसकी गणना रोगी के शरीर के वजन के अनुसार की जाती है, क्योंकि इलाज के लिए मूल आवश्यकता कॉर्ड ब्लड में उपलब्ध सेल्स की होती हैं। चूंकि नवजात शिशु की गर्भनाल में सीमित संख्या में ही रक्त होता है अर्थात सेल्स की संख्या भी सीमित मात्रा में ही होती है। मोटे तौर पर यह कहा जा सकता है कि यदि किसी पच्चीस साल के नौजवान को कॉर्ड ब्लड चाहिए तो केवल एक ही शिशु के गर्भनाल से एकत्रित रक्त उसके लिए काफी नहीं होगा।
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