बगदाद: 1985 में इराक के तानाशाह शासक सद्दाम हुसैन से अदावत के चलते इराक छोड़ने को मजबूर हुए मुस्तफा अल कदीमी ने उस समय शायद ही सोचा होगा कि वह एक दिन अपने मुल्क के प्रधानमंत्री बनेंगे। वक्त का पासा पलटा और अब सद्दाम हुसैन और उनके शासन का अंत हुए कई साल बीच चुके हैं। सालों तक निर्वासन में रहने के बाद अल-कदीमी न सिर्फ इराक लौटे बल्कि कई महत्वपूर्ण कामों को अंजाम तक पहुंचाया। इराक से इस्लामिक स्टेट के शासन के खात्मे में भी उनका अहम योगदान रहा है।
इराक के प्रधानमंत्री बने कदीमी
जीवन के कई पड़ावों से गुजरते हुए खुफिया एजेंसी के पूर्व प्रमुख मुस्तफा अल-कदीमी ने देश के अगले प्रधानमंत्री के तौर पर आज शपथ ले ली है। इराक में कोरोना वायरस वैश्विक महामारी के कारण पैदा हुए गंभीर आर्थिक संकट के बीच उन्होंने यह जिम्मेदारी संभाली है। संसद सत्र में 255 सांसदों ने भाग लिया और इराक के प्रधानमंत्री के तौर पर मुस्तफा अल-कदीमी के नाम के प्रस्ताव को मंजूरी दी, जिससे देश में पांच महीने से चल रहा नेतृत्व का संकट खत्म हो गया। कदीमी को जब प्रधानमंत्री पद के लिए मनोनीत किया गया था तो उन्होंने खुफिया प्रमुख के पद से इस्तीफा दे दिया था।
कदीमी के सामने हैं तमाम मुश्किलें
बता दें कि उन्होंने ऐसे समय में प्रधानमंत्री पद का कार्यभार संभाला है, जब तेल राजस्व में गिरावट के बीच इराक अभूतपूर्व संकट का सामना कर रहा है। कदीमी ने सत्र के दौरान सांसदों को संबोधित करते हुए कहा, ‘यह सरकार हमारे देश के सामने आ रहे सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संकट से निपटने के लिए आई है। यह सरकार समस्याओं का समाधान देगी, न कि संकट बढ़ाएगी।’ खास बात यह है कि कदीमी एक स्तंभकार और संपादक भी रहे हैं।
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