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Friday, May 8, 2020

बंदरों पर असर दिखा रही है चीन में बनी कोरोना वायरस की वैक्सीन

China conducts first successful COVID-19 vaccine test on monkeys | AP Representational

बीजिंग: कोरोना वायरस पूरी दुनिया में कहर बरपा रहा है और तमाम देशों में बर्बादी की वजह बन गया है। यही वजह है कि दुनिया के सभी देशों में कोरोना की वैक्सीन को तैयार करने का काम जारी है। इसके संक्रमण से मरने वालों की संख्या बढ़कर करीब ढाई लाख हो गई है और संक्रमित लोगों की संख्या 37 लाख के पार है। ऐसे हालात में चीन से एक राहत देने वाली एक खबर सामने आई है। मीडिया रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि चीन में बनी कोरोना वायरस की वैक्सीन बंदरों पर प्रभावी साबित हुई है।

बंदरों के शरीर से खत्म हो गए कोरोना वायरस

पाइकोवैक नाम की इस वैक्सीन को पेइचिंग स्थित सिनोवैक बायोटेक कंपनी ने तैयार की है। यह वैक्सीन शरीर में जाते ही इम्यून सिस्टम को एंटीबॉडी बनाने पर जोर देती है, और एंटीबॉडी वायरस को खत्म करने लगती है। दरअसल, इस वैक्सीन पर काम करने वाले शोधकर्ताओं ने एक तरह के प्रजाति के बंदरों (रीसस मैकॉक्स) को यह वैक्सीन लगाई, और फिर तीन सप्ताह बाद बंदरों को नोवल कोरोना वायरस से ग्रसित करवाया। एक सप्ताह बाद, जिन बंदरों को भारी संख्या में वैक्सीन दी गई थी, उनके फेफड़ों में वायरस नहीं मिला, जिसका साफ अर्थ है कि यह वैक्सीन असरदार और कामयाब है।

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वैक्सीन का टेस्ट बंदरों पर किया गया और नतीजे अच्छे रहे। Pixabay Representational

जल्द ही होगा वैक्सीन का ह्यूमन टेस्ट
इस बीच, जिन बंदरों को पाइकोवैक नाम की यह वैक्सीन नहीं दी गई थी, वे कोरोना वायरस से ग्रसित हैं और उन्हें गंभीर निमोनिया हो गया है। यह वैक्सीन अब मानव पर टेस्ट किया जाएगा। ऐसा नहीं है कि पाइकोवैक ही एकमात्र वैक्सीन है, जो दुनिया भर में सैकड़ों हजारों लोगों की जान लेने वाली महामारी को समाप्त करने की आशा बांधती है, बल्कि चीनी सैन्य संस्थान द्वारा बनाए गए एक अन्य वैक्सीन का मनुष्यों पर परीक्षण किया जा रहा है। सिनोफर्म कंपनी का उत्पाद, जिसमें पाइकोवैक के समान विधि का उपयोग किया गया है, नैदानिक परीक्षणों के दूसरे चरण में प्रवेश कर गया है।

कई और देश भी वैक्सीन बनाने में जुटे हैं
लेकिन, इस समय वैक्सीन के अंतिम पड़ाव पर पहुंचने की डगर थोड़ा मुश्किल है। आने वाले समय में इस वैक्सीन के निमार्ताओं को वैक्सीन टेस्ट के लिए स्वयंसेवकों को ढूंढना मुश्किल हो सकता है, क्योंकि इस समय चीन में कोरोना वायरस के रोगियों की संख्या सिर्फ सैकड़ों में ही है। यही स्थिति 2003 में सार्स की वैक्सीन बनाने के दौरान भी हुई थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन कई बार कह चुका है कि बिना प्रभावी वैक्सीन या दवा के कोरोना वायरस पर काबू पाना मुश्किल है। संयुक्त राष्ट्र का भी कहना है कि सामान्य जीवन में लौटने के लिए वैक्सीन ही एकमात्र विकल्प है। चीन के अलावा अमेरिका, इटली, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इजराइल आदि देश भी वैक्सीन बनाने में जुटे हुए हैं।



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