आचार्य चाणक्य की नीतियां और विचार आजकल के जमाने में भी प्रासांगिक बने हुए हैं। इन सभी को जिसने भी जीवन में उतारा उसका जीवन सफल हो गया। इन नीतियों का अनुसरण करने वाले व्यक्ति को किसी भी मुश्किल परिस्थिति में फैसला लेने में मदद मिलती है। इसके साथ ही वो सही और गलत का फर्क करने में कभी भी कोई चूक नहीं करता। आचार्य चाणक्य की इन सुविचारों में से आज हम एक विचार का विश्लेषण करेंगे। आज का ये विचार शत्रु के गुण को ग्रहण करने पर आधारित है।
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"शत्रु के गुण को भी ग्रहण करना चाहिए।" आचार्य चाणक्य
आचार्य चाणक्य ने अपने इस सुविचार में शत्रु के गुणों को ग्रहण करने पर जोर दिया है। आचार्य चाणक्य का कहना है कि सामने वाला भले ही आपका शत्रु क्यों न हो, लेकिन अगर वो गुणी हैं तो उसके उन गुणों को अपने जीवन में उतारने की कोशिश करनी चाहिए। ऐसा करने से न केवल आप अच्छे इंसान कहलाएंगे बल्कि अपने में एक और गुण को सम्मिलित कर लेंगे।
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अक्सर ऐसा होता है कि व्यक्ति अपने शत्रु के गुणों की सराहना तो करता है। लेकिन उनके गुणों को अपने जीवन में सिर्फ इस वजह से नहीं उतारना चाहिए क्योंकि उसके शत्रु में ये गुण है। अगर आप भी यही सोच रखते हैं तो तुरंत इसे बदलिए। सामने वाला व्यक्ति आपका दोस्त हो या फिर दुश्मन अगर उसमें कोई भी ऐसा गुण है जो सभी को बहुत अच्छा लगता है तो उसे अपनाने में बिल्कुल भी संकोच न करें। ऐसा इसलिए क्योंकि अच्छी चीजों को जीवन में उतारना अच्छा ही होता है।
गुण अच्छे ही होते हैं भले ही वो किसी ऐसे व्यक्ति में हो जिससे आप नफरत ही क्यों न करते हो। ये गुण आप किससे ग्रहण कर रहे हैं, इससे फर्क नहीं पड़ता है। फर्क तो बस आपकी अच्छी सोच से पड़ता है। इसलिए आचार्य चाणक्य के अनुसार शत्रु के गुण को भी ग्रहण करना चाहिए।
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