आचार्य चाणक्य ने सफल जीवन जीने की कुछ नीतियां और विचार व्यक्त किए हैं। इन्हें जिसने भी अपने जीवन में उतारा उसका जीवन सफल है। आचार्य चाणक्य के इन्हीं विचारों में से आज हम एक विचार का विश्लेषण करेंगे। आज का ये विचार मनुष्य की भूख पर निर्भर है।
"भूख के समान कोई दूसरा शत्रु नहीं है।" आचार्य चाणक्य
आचार्य चाणक्य ने अपने इस कथन में मनुष्य की भूख को उसका सबसे बड़ा शत्रु बताया है। आचार्य चाणक्य का कहना है कि मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन कोई और नहीं बल्कि उसकी भूख है। यहां पर भूख का मतलब आप सत्ता, बिजनेस, मकान या फिर पैसा किसी से भी जोड़कर देख सकते हैं। इन सभी की अति मनुष्य के विनाश का कारण बनती है।
असल जिंदगी में आपने कई बार देखा होगा कि कुछ लोग पैसों के पीछे इतने भागते हैं कि उनका परिवार ही दांव पर लग जाता है। यहां तक कि उनके रिश्ते भी पैसों की भेंट चढ़ जाते हैं। फिर भी उस व्यक्ति को तसल्ली नहीं होती और वो तब तक उसके पीछे भागता रहता है जब तक उसके पास कुछ भी न बचें। ऐसा व्यक्ति पैसों की लालच में इस तरह गिरफ्त होता है कि उसे समझाने का भी कोई फायदा नहीं होता।
ये तो उदाहरण आपने पैसों का देखा। सत्ता की भूख भी इंसान को कई बार इस कदर गिरा देती है कि वो फिर उठने लायक ही नहीं रहता। सत्ता में परिवार की बागडोर हाथ में लेने से लेकर राजनीति सत्ता भी शामिल हैं। कुछ लोग यही चाहते हैं कि परिवार की पूरी सत्ता उनके हाथ में आ जाए। सभी फैसले उनसे पूछ कर लिए जाएं। ऐसा व्यक्ति इस भूख के पीछे इस कदर खुद को बर्बाद करता है कि वो सही और गलत दोनों का फर्क ही भूल जाता है।
यही हाल राजनीति के क्षेत्र में भी होता है। कई नेता राजनीति में अपने उसूलों से समझौता नहीं करते तो कुछ लोग समझौते के साथ राजनीति करते हैं। ऐसे लोग भी सत्ता के प्रति कुछ भी कर गुजरने का दम रखते हैं। उस वक्त तो ऐसे लोगों को सब ठीक लगता है लेकिन समय के साथ उन्हें पछतावा जरूर होता है। इसलिए आचार्य चाणक्य का कहना है अगर कोई व्यक्ति इस भूख की चपेट में आ गया तो उसका विनाश होना निश्चित है। अगर खुद को बचाना है तो इससे दूर ही रहें।
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