पीएम नरेंद्र मोदी आज 70 साल के हो गए हैं। उनकी जिंदगी का गुजरात और उससे पहले का वक्त अनकहा है। इसी अनकहे दौर को मोदी ने अपनी डायरी के पन्नों में दर्ज किया है, लेकिन करीब 20 साल पहले वे उसे आग के हवाले कर रहे थे। इसी दौरान उन्हीं के हमनाम एक दोस्त ने उन पन्नों को मोदी से छीनकर बचाया और गुजराती में 'साक्षीभाव' नाम की किताब का रूप दे दिया।
अब उसी किताब को लेखिका भावना सोमैया नेअंग्रेजी में 'लेटर्स टू मदर' के नाम से अनुवाद किया है। पीएम मोदी के जन्मदिवस के मौके पर भास्कर के पाठकों के लिए इस किताब से जुड़ी रोचक खुद भावना सोमैया की जुबानी...
' यह 1986 का दिन था। इस समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक कार्यकर्ता यानी नरेंद्र मोदी ने ग्रामीण इलाके में शिविर का आयोजन किया था। अंधेरी रात में नरेंद्र मोदी नाइट लैंप की रोशनी में अपनी डायरी लिखने बैठे। इस डायरी में वे अपनी भावनाएं व्यक्त करते थे। अलग-अलग मुद्दों पर चलने वाली उनकी कलम से निकलते शब्द दार्शनिक होने के बावजूद भावनाओं से ओतप्रोत होते थे। उनका यह क्रम वर्षों तक अनवरत जारी रहा। कहें तो दशकों तक चलता रहा।
इस बात को कई साल बीत गए और फिर एक वाकया साल 2000 में घटा, जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री के पद पर थे। न जाने क्यूं एक दिन वे बगीचे में बैठे-बैठे अपनी डायरी के पन्ने फाड़-फाड़कर आग के हवाले कर रहे थे। तभी उनके एक खास दोस्त मिलने आ पहुंचें। अपनी ही डायरी के पन्नों को स्वाहा कर रहे मोदी को देखकर दोस्त को झटका लगा। उसने तुरंत ही मोदी के हाथों से वह डायरी खींच ली। उसने इसके लिए मोदी को टोका भी कि अपनी ही रचना की कदर क्यों नहीं कर रहे। दोस्त ने सोचा कि मोदी बची डायरी को और नुकसान न पहुंचाएं, इसके लिए वह बाकी डायरी को अपने साथ ले गए।
इस प्रसंग को भी 14 सालों का समय बीत गया। अब 2014 का समय था और जगह थी मुंबई का भाईदास ऑडिटोरियम। अवसर था गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की किताब 'साक्षीभाव' के विमोचन का। खचाखच भरे भाईदास ऑडिटोरियम में एक गजब की ऊर्जा और उत्कंठा हवा में तैर रही थी। बाहर सड़क पर ट्रैफिक जाम लगा था और जितने लोग अंदर थे, उससे कहीं ज्यादा लोग ऑ़डिटोरियम के बाहर भी जमा थे। कार्यक्रम शुरू हुआ और एक के बाद एक वक्ताओं के भाषणों का दौर शुरू हुआ।
इसी बीच नरेंद्र मोदी के नाम की घोषणा हुई और पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा, क्योंकि अब लोगों के लिए इस किताब के पीछे की कैफियत जानने का मौका था। इस दौरान मोदी ने बताया कि यह पुस्तक दो व्यक्तियों के सतत प्रोत्साहन का ही परिणाम है। इसमें पहले व्यक्ति का नाम नरेंद्रभाई पंचासरा था, जिन्होंने मोदी के हाथ से वह डायरी छीन ली थी, जिसे मोदी जला रहे थे। वहीं, दूसरे व्यक्ति थे गुजरात के जाने-माने कवि और प्रकाशक सुरेश दलाल, जो लगातार मोदी को यह किताब लिखने के लिए प्रोत्साहित कर रहे थे। उस शाम का एक-एक पल मुझे आज भी याद है। क्योंकि, मैं भी उस ऑडिटोरियम में मौजूद थी। और, यह बात तो मैंने सपने में भी नहीं सोची थी कि इसका अंग्रेजी अनुवाद करने का मौका मुझे ही मिलने वाला है।
चार साल बाद 2018 की एक सुबह मैं घर पर थी। श्रीकृष्ण पर लिखी एक पुस्तक के मेरे अनुवाद को लेकर मेरे एक लेखक दोस्त का फोन आया था। उन्होंने पूछा कि मैं अब किसी किताब का अनुवाद क्यों नहीं कर रही हूं। इसके बाद उन्होंने मुझसे कहा कि तुम्हें नरेंद्र मोदी की किताबों का अंग्रेजी अनुवाद करना चाहिए। मैं जानती थी कि यह काम बहुत कठिन है। इसलिए मैंने मना कर दिया, लेकिन जब तक मैंने अनुवाद के लिए हां नहीं कह दिया, मेरे उस दोस्त ने सांस नहीं ली। आखिरकार मैंने उससे कहा कि मैं कोशिश करूंगी।
सच बताऊं तो उससे पीछा छुड़ाने के लिए ही मैंने हां कह दिया था। लेकिन, फिर मैं अपने स्टडी रूम में गई और शेल्फ से नरेंद्र मोदी की किताब 'साक्षीभाव' निकालकर पढ़ने लगी। धीरे-धीरे मैं इस किताब के लेखन में डूबती चली गई, क्योंकि यह दृष्टिकोण शैली में लिखी हुई थी। नरेंद्र मोदी ने इस किताब में कई ऐसे गूढ़ शब्दों का प्रयोग किया था, जिसके लिए मुझे कई बार डिक्शनरी खंगालनी पड़ी। मोदी की भाषा शैली एकदम गहन और चुंबकीय है और इसीलिए किताब पूरी पढ़ने के बाद मैंने उसका अंग्रेजी अनुवाद करने का मन बना लिया था। क्योंकि, उनके द्वारा व्यक्त की गई भावनाओं की पारदर्शिता और खासतौर पर खुद को व्यक्त करने की जरूरत मुझे छू गई थी।
मैं फुलटाइम लेखक नहीं हूं... मुझे मेरा समय नौकरी और किताबों के बीच पहुंचने के लिए भी रखना पड़ता है। अभी तक मैंने अपनी सारी किताबें इसी तरह समय निकाल-निकालकर ही लिखीं। इस पुस्तक के लिए मैंने टाइम टेबल तय किया और रोज की पांच कविताओं का अनुवाद करना शुरू किया। पुस्तक का पहला ड्राफ्ट तैयार हो गया। हालांकि, मेहनत का सही काम तो किताब की ड्राफ्टिंग के बाद ही आना था। क्योंकि, तब आप दो भाषाओं और उसमें व्यक्त होने वाली भावनाओं को यथावत तरीके से अनुवादित करने के यज्ञ में जुटे होते हो।
कई ड्राफ्ट्स, रीराइटिंग, शब्दों के अर्थ बार-बार देखना, उसका संदर्भ चेक करना ये सभी काम ड्राफ्टिंग के बाद ही होते हैं। आखिरकार किताब की मेन्युस्क्रिप्ट तैयार हुई। प्रसिद्ध हस्तियों की पुस्तकें तैयार करने वक्त सभी औपचारिकताओं, प्रोटोकॉल और अन्य कई बातों से दो-चार होना पड़ता है। आखिरकार 'हार्पर कॉलिंस' के रूप में प्रकाशक का नाम तय हुआ और अब मैं किताब पब्लिश कराने के लिए तैयार थी। इसके लिए मैंने खुद एक बार नरेंद्र मोदी से मुंबई के राजभवन में मुलाकात भी की थी।
अब 2020 में इस पुस्तक 'लेटर्स टू मदर' के सुपर प्रेजेंटेशन का पूरा श्रेय हमारे प्रकाशक 'हार्पर कॉलिंस' को जाता है। क्योंकि, यह किताब अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचे, यह आइडिया एडिटर उदयन मित्रा का ही था। उनका मानना था कि यह पुस्तक भारत के प्रधानमंत्री और गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री की नहीं, बल्कि एक कॉमनमैन की है। जिसने अपने दिल की धड़कनों में छिपा रखी अपनी भावनाओं को सबके सामने रखने की हिम्मत दिखाई है। इसीलिए यह पुस्तक देश के सभी लोगों तक पहुंचनी चाहिए।
'लेटर्स टू मदर' किताब एक इमेज के पीछे रहे व्यक्ति के डर और उत्तेजना को दर्शाती है। पुस्तक की प्रस्तावना में पीएम नरेंद्र मोदी लिखते हैं कि इसे पब्लिश कराने के पीछे का उद्देश्य कोई साहित्यिक कृति लाने का नहीं है। बल्कि, इस किताब में उनके अवलोकन और भावनाओं को बिना किसी फिल्टर के पेश किया गया है। उनकी यह प्रामाणिकता ही मुझे सबसे ज्यादा छू गई।
एक विचार यह भी आ सकता है कि इस किताब से लोगों को क्या मिलेगा? तो इसका उत्तर है कि पहले तो आप रोजाना अपने विचारों को कागज पर व्यक्त करिए। दूसरा व्यक्ति को अपनी रचनाओं की कद्र करनी चाहिए। भावनाओं के आवेश में आकर उन्हें मिटाना नहीं चाहिए। क्योंकि, जब आप अपनी भावनाएं कागज पर उतारते हैं तो दुनिया देखने का आपका दृष्टिकोण भी अलग होता है। और तीसरा यह कि व्यक्ति कुछ छिपाए बिना एकदम प्रामाणिकता से व्यक्त होता है। सबसे बड़ी यही है कि यह काम भी आपकी अदम्य हिम्मत का परिचय करवाता है।
अभी तक पूरी दुनिया एक महामारी से लड़ रही है तब 'लेटर्स टू मदर' एक आशा और दृढ़ता का संचार करती है कि हम हर संकट को पार कर विजय हासिल कर सकते हैं।
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